Tuesday, March 24, 2009

Hindi Novels - Black Hole / CH:2 जाकोब

सुबह का वक्त. सुरजके उगनेकी आहट हो चूकी थी. ऐसेमे एक सुंदर हरे हरे हरियालीसे घिरी हूई एक छोटीसी कॉलनी. और उस कॉलनीमें बसे हूए छोटे छोटे आकर्षक मकान. कॉलनीका वातावरण सुबहके उत्साह और मांगल्यसे भरा हुवा था. पंछियोंकी मधूर चहचहाट वातावरणमें मानो औरभी स्फुर्ती भर रही थी. कॉलनीके और कॉलनीके आसपासके हरे हरे पेढ सुबहके हवाके मंद मंद झोंकोके साथ हौले हौले डोल रहे थे. जैसे जैसे उजाला हो रहा था कॉलनीमें अब कुछ पादचारी दिखने लगे. सुबहके हवाके मांगल्य और ठंडका आस्वाद लेते हूए वह कॉलनीमें घुम रहे थे. कुछ लोग जॉगींग करते हूएभी दिख रहे थे तो कुछ साईकिलेंभी रास्तेपर दौडते हूए दिख रही थी. उस कॉलनीके छोटे छोटे मकानोंके समुहमें एकदम बिचमें बसा हूवा एक मकान. बाकी मकानोंकी तरह इस मकानके सामनेभी हरे हरे घांस का लॉन उगाया गया था और किनारे किनारेसे छोटे छोटे फुलोंके गमले थे. . वहा उगे हूए फुल मानो एकदुसरेसे स्पर्धा कर रहे थे ऐसा लग रहा था. अचानक एक साईकिल उस मकानके गेटके सामने आकर रुक गई. पेपरवाला लडका था. उसने पेपरका गोल रोल बनाया और निशाना साधते हूए मकानके मुख्य द्वारके सामने फेंक दिया. वह पेपरवाला लडका पेपर फेंककर अब वहासे निकलनेही वाला था इतनेमें गेटके सामने एक कार आकर रुक गई. कारसे एक उंचा, गोरा, जिसका कसा हूवा शरीर था ऐसा आकर्षक व्यक्तीत्व वाला युवक, जाकोब उतर गया. उसकी उम्र लगभग तिसके आसपास होगी. कारसे उतरनेके बाद गेटकी तरफ जाते हूए उसने प्यारसे पेपरवालेके सरके बालोंसे अपना हाथ फेरा. पेपरवालाभी उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया और अपनी साईकिल लेकर आगे बढा. मकानके अंदर हॉलमे एक सुंदर लेकिन उतनीही खंबीर यूवती, स्टेला फोनका नंबर डायल कर रही थी. उसकी उम्र लगभग अठ्ठाईसके आसपास होगी. उसका चेहरा नंबर डायल करते हूऐ वैसे गंभीरही दिख रहा था लेकिन उसके चेहरेके इर्दगिर्द एक आभा दिख रही थी. उसके आंखोके आसपास बने घने काले सर्कलसे वह हालहीमें किसी गंभीर चिंतासे गुजर रही होगी ऐसा लग रहा था. उसके बगलमेंही, उसकी ननंद, एक इक्कीस बाईस सालकी कॉलेजमें जानेवाली जवान लडकी, सुझान खडी थी. सुझानभी सुंदर थी और उसमें कॉलेजमें जानेवाली लडकियोंवाला एक अल्लडपण दिख रहा था. '' कौन? डॉ. फ्रॅकलीन बोल रहे है क्या?'' स्टेलाने फोन लगतेही फोनपर पुछा. उधरकी प्रतिक्रियाके लिए रुकनेके बाद स्टेला आगे फोनपर बोली, '' मै मिसेस स्टेला फर्नाडीस, डॉ. गिब्सन फर्नाडीसकी पत्नी...'' इतनेमें डोअरबेल बजी. स्टेलाने सुझानको कौन है यह देखनेका इशारा किया और वह आगे फोनपर बोलने लगी, ' नही यह आप लोग जो संशोधन कर रहे थे उसके सिलसिलेमें मै आपसे बात कर रही हूं....''सुझान अपनी भाभीने इशारा करनेके बाद सामने दरवाजेके पास गई और उसने दरवाजा खोला. सामने दरवाजेमें जोभी खडा था उसे देखकर वह भौचक्कीसी रह गई. दरवाजेमें जाकोब खडा था. '' तुम? ... उस दिन ..."' '' मै ... गिब्सनका दोस्त हूं ... स्टेला है क्या अंदर? '' जाकोबने उसका संवाद बिचमेंही तोडते हूऐ पुछा. सुझानने मुडकर अंदर स्टेलाकी तरफ देखा. इतनेमें मौकेका फायदा लेते हूए जाकोब अंदर घुस गया. अंदर जाकर वह सिधा स्टेला जहा फोन कर रही थी वहां हॉलमें गया. सुझान दरवाजेमें खडी आश्चर्यसे उसे अंदर जाता देखती रह गई. उसे क्या बोले कुछ सुझ नही रहा था. स्टेलाका अबभी फोनपर संवाद चल रहा था, '' मै फिरसे कभी फोन कर आपको तकलीफ दूंगी ...''उधरका संवाद सुननेके लिए बिचमें रुककर उसने कहा, '' सॉरी ... ''फिरसे वह उधरका संवाद सुननेके लिए रुकी और , '' थॅंक यू '' कहकर उसने फोन रख दिया. उसके चेहरेसे उसने जिस चिजके लिए फोन किया था उसके बारेंमें वह समाधानी नही लग रही थी. इतनेमें उसका खयाल उसके एकदम पास खडे जाकोबकी तरफ गया. उसने प्रश्नार्थक मुद्रामें जाकोबकी तरफ और फिर सुझानकी तरफ देखा. '' हाय.. मै जाकोब ... गिब्सनका दोस्त'' जाकोबने वह कुछ पुछनेके पहलेही अपनी पहचान बताई. '' हाय '' स्टेलाने उसके 'हाय' को प्रतिउत्तर दिया. इतनेमें स्टेलाका ध्यान उसके कलाईपर बंधे एक चमकते हूए पारदर्शक पत्थरकी तरफ गया. इतना बडा और इतना तेजस्वी चमकता हूवा पत्थर शायद उसने पहली बार देखा होगा. वह एकटक उस पत्थरकी तरफ देख रही थी. '' हम कभी पहले मिले है ?'' जाकोबने पुछा. '' मुझे नही लगता '' स्टेलाने जवाब दिया. . '' कोई बात नही ... मुलाकात यह कभी ना कभी पहलीही होती है ... मुझे लगता है गिब्सनने हमारी पहचान पहले कभी नही करके दी... मतलब वैसा कभी मौकाही नही आया होगा ... '' जाकोबने कहा. इतनी देरसे हम बात कर रहे है लेकिन मैने उसे बैठनेके लिएभी नही बोला.. एकदम स्टेलाके खयालमें आया. '' बैठीएना... प्लीज'' वह सोफेकी तरफ निर्देश करते हूए बोली. जाकोब सोफेपर बैठ गया और उसके सामनेवाले सोफेपर स्टेला बैठ गई ताकी वह उससे ठिकसे बात कर सके. '' ऍक्चूअली... मुझे तुमसे एक महत्वपूर्ण बात करनी थी '' जाकोबने शुरवात की. स्टेलाके चेहरेपर उत्सुकता दिखने लगी. सुझान अबभी वही खडी इधर उधर कर रही थी. जाकोबने अपनी नजरका एक तिक्ष्ण कटाक्ष सुझानकी तरफ डाला. वह जो समझना था समझ गई और वहांसे अंदर चली गई. फिर उसने काफी समयतक स्टेलाके आंखोमें आंखे डालकर देखते हूए कहा, '' लेकिन उसके लिए तुम्हे मेरे साथ आना पडेगा '' वह अबभी उसके आंखोमें आखें डालकर देख रहा था. '' किधर ?'' उसने आश्चर्यसे पुछा. जाकोब अब उठ खडा हूवा था. उसने कोनेमें टेबलपर रखे स्टेला और गिब्सन, उसके पतीके फोटोकी तरफ गौरसे देखते हूए कहा, '' मुझपर भरोसा रखो .... तुम अभी इतनेमें जिस बातकी वजहसे इतनी परेशान हो .. यह उसीके सिलसिलेमें है ...''वह अब बाहर दरवाजेकी तरफ जाने लगा. स्टेला सोफेसे उठ गई और चूपचाप उसके पिछे पिछे जाने लगी.
क्रमश:...

2 comments:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर..स्वागत है...

Deepak "बेदिल" said...

wah ji wah ji....kya baat hai saare shabdo ko piroya hai apne sach me ..namshkaar